Sunday 1 July 2018

Meri Gazal

ग़ज़ल 
नई दुनिया को बसाने का हुनर इन बंजारों से पूछिए 
अँधेरे को रौशन करने का सुकून सितारों से पूछिए 
जिन लहरों को अपनी बांहो में झुलाया था दिनरात हमने 
उनकी चोट से कैसे दिल टूटता है, किनारों से पूछिए 
अपनों से गले मिलकर कितनी बेइंतहा  ख़ुशी होती है 
यह धरती से मिलनेवाली बारिश की फुहारों से पूछिए 
हर जुड़ती हुई ईंट के साथ कितना कुछ टूटता जाता है 
यह दिलों के आंगन में उठती हुई दीवारों से पूछिए 
कहने की कोशिश में कितना कुछ अनकहा ही रह जाता है 
 यह तो किसी गूंगे आदमी के बेबस इशारों से पूछिए 
किश्तियों को उनके मुकाम तक  पहुंचना कितनी बड़ी बात है 
अगर जानना हो तो मल्लाहों के पतवारों से पूछिए 
ग़ज़ल का हर शेर किसी बेशकीमती नगीने से कम नहीं 
इन कोहिनूरों की कीमत तो हम कलमकारों से पूछिए 

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