ग़ज़ल
नई दुनिया को बसाने का हुनर इन बंजारों से पूछिए
अँधेरे को रौशन करने का सुकून सितारों से पूछिए
जिन लहरों को अपनी बांहो में झुलाया था दिनरात हमने
उनकी चोट से कैसे दिल टूटता है, किनारों से पूछिए
अपनों से गले मिलकर कितनी बेइंतहा ख़ुशी होती है
यह धरती से मिलनेवाली बारिश की फुहारों से पूछिए
हर जुड़ती हुई ईंट के साथ कितना कुछ टूटता जाता है
यह दिलों के आंगन में उठती हुई दीवारों से पूछिए कहने की कोशिश में कितना कुछ अनकहा ही रह जाता है
यह तो किसी गूंगे आदमी के बेबस इशारों से पूछिए
किश्तियों को उनके मुकाम तक पहुंचना कितनी बड़ी बात है
अगर जानना हो तो मल्लाहों के पतवारों से पूछिए
ग़ज़ल का हर शेर किसी बेशकीमती नगीने से कम नहीं
इन कोहिनूरों की कीमत तो हम कलमकारों से पूछिए